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जीव पदार्थ
मोक्ष भाव जीव
५१. जीव का समस्त कर्मों से मुक्त हो जाना ही उसका मोक्ष
कहलाता है। मोक्ष भी भाव जीव है। जीव का जिन कर्मों से छुटकारा हुआ वे अजीव पुद्गल है।
५२. शब्दादिक कामभोगों का जो संयोग करता है, वह आश्रव आश्रव, संवर
निर्जरा-इन भाव भाव जीव है। इससे जो कर्म आकर लगते हैं, वे अजीव ।
जीवों का स्वरूप (५२-५४)
५३. शब्दादिक कामभोगों को त्याग कर उन्हें अलग करना यह
संवर भाव जीव है। इससे अजीव कर्मों का प्रवेश रुकता
५४. निर्जरा और निर्जरा की करनी, जो दोनों ही जीव द्वारा
आदरणीय हैं, भाव हैं । क्षय अजीव कर्मों का हुआ या होता
५५.
जो जीव कामभोगों में सुखानुभव करता है, वह संसार के सम्मुख है। वह आश्रव भाव जीव है। इससे अजीव कर्म लगते हैं।
संसार की ओर जाव का सम्मुखता
व विमुखता
६.
कामभोगों से जिसका स्नेह टूट गया, वह संसार से विमुख है। वह संवर और निर्जरा भाव जीव है। संवर और निर्जरा से अजीव कर्म क्रमशः रुकते और टूटते हैं।
५७. सर्व सावध कार्य अकृत्य हैं-अनार्य कर्तव्य हैं। ये सब भाव
जीव हैं। इनसे अजीव कर्म आते और लगते हैं।
सर्व सावध कार्य
भाव जीव
त है।
सुविनीत अविनीत
भाव जीव
५८. जो जिन-आज्ञा का अच्छी तरह से पालन करता है, वह
सुविनीत भाव जीव है और जो जिन-आज्ञा का उल्लंघन कर कु-राह पर चलता है, वह अनीतिवान भाव जीव है |