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नव पदार्थ
४२. 'अप्रत्याख्यानक्रिया आस्रव : संयमघाति कर्म की पराधीनता से पाप से
अनिवृत्ति। जिस तरह आस्रव के २० भेदों में से अन्तिम पन्द्रह का योगास्रव में समावेश होता है उसी तरह ४२ भेदों में सब के सब योगास्रव में समाहित होते हैं | मन-वचन-काय के सर्व कार्य सावध योगास्रव हैं। जिन अठारह पापों का पूर्व में उल्लेख आया है वे भी योग रूप ही हैं। विविध कर्मों के बन्ध-हेतुओं में जो भी क्रिया रूप व्यापार हैं उन सब को योगास्रव का भेद समझना चाहिए। ७. आस्रव और संवर का सामान्य स्वरूप (गा० ९-१०) :
गा० ३-८ में स्वामीजी ने पाँच आस्रव और साथ ही पाँच संवर की परिभाषाएँ दी हैं। यहाँ पाँच आस्रव और पाँच संवर के सामान्य स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है। आस्रव और संवर दोनों जीव-परिणाम हैं। जीव का मिथ्या श्रद्धारूप परिणाम मिथ्यात्व, अत्याग-भावरूपपरिणाम अविरति, अनुत्साहरूप परिणाम प्रमाद, क्रोधादिरूप परिणाम कषाय और मन-वचन-काय के व्यापाररूप परिणाम योग हैं। इस तरह पाँचों आस्रव जीव के परिणाम हैं। इसी तरह सम्यक् श्रद्धारूप परिणाम सम्यक्त्व, देश सर्व त्यागरूप परिणाम विरति, प्रमादरहिततारूप परिणाम अप्रमाद, कषायरहिततारूप परिणाम अकषाय और अव्यापाररूप परिणाम अयोग संवर है।
आस्रव और संवर दोनों जीव-परिणाम होने पर भी स्वभाव में एक दूसरे से भिन्न हैं । आस्रव जीव की उन्मुक्तता है। संवर उसकी गुप्ति । आस्रव कर्मों को आने देते हैं। संवर उनको रोकते हैं। आस्रव कर्मों के आने के द्वार-उपाय हैं । संवर उनको रोकने के द्वार-उपाय हैं। श्री अभयदेव लिखते हैं-“जीव रूपी तालाब में कर्म रूपी जल के आने के लिए जो द्वार की तरह द्वार-उपाय हैं वे आस्रव-द्वार हैं । जीव रूपी तालाब में कर्म रूपी जल के आगमन के निरोध के लिए जो द्वार-उपाय हैं वे संवर द्वार हैं। मिथ्यात्व आदि आस्रवों के क्रमशः विपर्यय रूप सम्यक्त्व आदि संवर हैं।"
१. तत्त्वा० ६.६. भाष्य में क्रियाओं के नाम इस प्रकार हैं :
तद्यथा-सम्यक्त्वमिथ्यात्वप्रयोगसमादानेर्यापथाः, कायाधिकरणप्रदोषपरितापन-प्राणातिपाताः, दर्शनस्पर्शनप्रत्ययसमन्तानुपातानाभोगाः स्वहस्तनिसर्गविदारणानयनानवकाङ्क्षा आरम्भपरिग्रहमायामिथ्यादर्शनाप्रत्याख्यानक्रिया इति। ठाणाङ्ग ५.२.४१८ : आश्रवणं-जीव तडागे कर्मजलस्य सङ्गलनमाश्रवः, कर्मनिबन्धनमित्यर्थः, तस्य द्वाराणीव द्वाराणि-उपाया आश्रवद्वाराणीति। तथा संवरणं-जीवतडागे कर्मजलस्य निरोधनं संवरस्तस्य द्वाराणि-उपायाः संवरद्वाराणि-मिथ्यात्वादीनामाश्रवाणां क्रमेण विपर्ययाः सम्यकत्वविरत्य