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________________ ३७२ नव पदार्थ ५. आस्रवों की संख्या (गा० १-२) : आस्रव कितने हैं इस विषय में भिन्न प्रतिपादन मिलते हैं : . . १. आचार्य कुन्दकुन्द के मत से आस्रव ४ हैं-(१) मिथ्यात्व आस्रव (२) अविरति आस्रव (३) कषाय आस्रव और (४) योग आस्रव'। श्री विनयविजयजी ने भी आचार्य कुन्दकुन्द का अनुसरण करते हुए इन चार को ही आस्रव कहा है। २. वाचक उमास्वाति के मत से आस्रव ४२ हैं-(१) पाँच इन्द्रियाँ, (२) चार कषाय, (३) पाँच अव्रत, (४) पचीस क्रियाएँ और (५) तीन योगरे । अनेक श्वेताम्बर आचार्यों ने इसी पद्धति से आस्रव का निरूपण किया है। ३. आस्रव के भेद २० भी प्रसिद्ध हैं। : (१) मिथ्यात्व आस्रव (२) अविरति आस्रव (३) प्रमाद आस्रव (४) कषाय आस्रव (५) योग आस्रव (६) प्राणातिपात आस्रव (७) मृषावाद आस्रव (८) अदत्तादान आस्रव (६) मैथुन आस्रव (१०) परिग्रह आस्रव (११) श्रोत्रेन्द्रिय १. समयसार ४.१६४-६५ : . मिच्छत्तं अविरभणं कसायजोगा य सण्णसण्णा दु। बहुविहभेया जीवे तस्सेव अणण्णपरिणामा।। णाणावरणादीयस्स ते दु कम्मस्स कारणं होंति। तेसिंपि होदि जीवो य. रागदोसादिभावकरो।। २. शांतसुधारस : आश्रव भावना ३ : मिथ्यात्वाविरतिकषाययोगसंज्ञा-। श्चत्त्वारः सुकृतिभिराश्रवाः प्रदिष्टाः।। ३. तत्त्वा० ६.१, २, ६ : . कायवाङ्मनःकर्म योगः। स आस्रवः अव्रतकषायेन्द्रियक्रियाः पञ्चचतुःपञ्च पञ्चविंशतिसंख्याः पूर्वस्य भेदाः ४. शांतसुधारस : आस्रव भावना ४ : इन्द्रियाव्रतकषाययोगजाः। पंच पंचचतुरन्वितास्रयः ।। पंचविंशतिरसत्क्रिया इति। नेत्रवेदपरिसंख्ययाऽप्यमी।। ५. पचीस बोल : बोल १४ । इन २० आस्रवों का एक स्थल पर उल्लेख किसी आगम में देखने में नहीं आया। उनका आधार इस प्रकार दिया जा सकता है: १-५ ठाणाङ्ग : ५.२.४१८; समवायाङ्ग सम० ५ ६-१० प्रश्नव्याकरण : प्रथम श्रुतस्कंध अ० १-५ ११-२० ठाणाङग : १०.१.७०६
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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