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________________ ३६० • नव पदार्थ ५०. विपरीत तत्व कुण जांणे, .. कुण. मांडें.. उलटी ताणे। कुण हिंसादिक रो अत्यागी, कुण री · वंछा · रहे लागी।। ५१. सबदादिक कुण · अभिलाखे, कषाय भाव कुण' राखे। कुण मन जोग रो व्यापारो, कुण चिन्तवे म्हारों थारो।। ५२. इद्र यां ने कुण मोकली मेलें, सब्दादिक न कुण झेले। इणनें मोकली मेले ते आश्रव, तेहिज 'छे. ‘जीव दरब ।। ५३. मुख सूं कुण मँडो बोले, काया सूं कुंण माठो डोले ।' 'ए जीव दरब नों व्यापार, पुदंगल "पिण वरते. छे लार ।। ५४. जीव रा चलाचल परदेस, त्यांने : थिर: थापे दिढ करेस । जब आश्रव दरब रूंधाणो, तब तेहिज , संवर .. थपाणो।। ५५. चलाचल जीव परदेस, सारा.. परदेसां करम · प्रवेस-। सारा परदेसां करम ग्रहता, सारा परदेसां करमां रां करता।। ५६. त्यां परदेसां रो थिर करणहार, तेहिज संवर दुवार अथिर परदेस ते ..आश्रव, ‘ते । निश्चंई जीव दरब ।। ५७. जोग परिणामीक ने उदे भाव, त्यांने जीव कह्या इण न्याव । . अजीव तो . उदे भाव नाही, ते देखलो सूतर । माहीं।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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