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________________ पाप पदार्थ : टिप्पणी २ ૨૬૩ कहे गए हैं उसका भेद यह है कि वहाँ प्राणातिपात आदि कर्मों का विवेचन है; प्राणातिपात आदि क्रियाओं का नहीं। वे लिखते हैं-"जिस कर्म के उदय से जीव दूसरे के प्राणों का हनन करता है, उस कर्म को प्राणातिपात स्थानक कहते हैं। मन,वचन और काय से हिंसा करना प्राणातिपात आस्रव है। प्राणातिपात करने से जिनका बंध होता है वे सातआठ अशुभ कर्म हैं। यही बात ‘भगवती सूत्र' में वर्णित बाद के मिथ्यादर्शनशल्य तक के स्थानकों के विषय में समझनी चाहिए। जैसे-जिस कर्म के उदय से जीव झूठ बोलता है वह मृषावाद पाप-स्थानक है। झूठ बोलना मृषावाद आम्रव है। झूठ बोलने से जिनका बंध होता है वे दुःखदायी सात-आठ कर्म हैं। यावत् जिस कर्म के उदय से जीव मिथ्या-श्रद्धान करता है वह मिथ्यादर्शनशल्य कर्म-स्थानक है। मिथ्या-श्रद्धान करना मिथ्यात्व आम्रव है। इससे जिनका आस्रव होता है वे सात आठ-कर्म हैं।" इस विवेचन से स्पष्ट है कि कर्म-हेतु और कर्म जुदे-जुदे हैं। हेतु या क्रिया वह है जिससे कर्म बंधते हैं। कर्म वह है जो क्रिया का फल हो अथवा जिसका उदय उस क्रिया का कारण हो। १. झीणी चर्चा ढा० २२.१-४, २०, २१, २२, २४ : जिण कर्म ने उदय करी जी, हणे कोई पर प्राण । तिण कर्म ने कहिये सहीजी, प्रणातिपात पापठाण ।। हिसा करै त्रिहूं योग सूं जी, आस्रव प्राणातिपात। आय लागै तिके अशुभ कर्म छै जी, सात आठ साक्षात ।। जिण कर्म ने उदय करी जी, बोलै झूठ अयाण। तिण कर्म ने कहिये सही जी, मृषावाद पापठाण।। झूठ बोलै तिण ने कह्या जी, आस्रव मृषावाद ताहि। आय लागै तिके अशुभ कर्म छै जी सात आठ दुखदाय।।.' मायादिक ठाणा तिके जी, इमहिज कहिये विचार । ज्यांरा उदय थी जे जे नीपजै जी, ते कहिये आस्रव द्वार ।। जिण कर्म ने उदय करी जी, ऊधो श्रद्धे जाण। तिण कर्म ने कह्यो अठारमो जी. मिथ्यादर्शण पापठाण ।। ऊधो सरधै तिण ने कह्यो जी, आस्रव प्रथम मिथ्यात। आय लागै तिके अशुभ कर्म छै जी, सात आठ साक्षात ।। भगवती शतक बारमें जी, पंचम उदेश मझार। ते सहु पापठाणा अछै जी, तिणस्यूं वर्णादिक कह्या विचार ।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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