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________________ ૨૬૦ नव पदार्थ ६. ग्यांनावर्णी कर्म री प्रकृत पांचे, तिणसूं पांचोइ ग्यांन जीव न पावे । मत ग्यांनावी मतग्यांन रे आडी, सुरत ग्यांनावी सुरत ग्यांन न आवे।। ७. अवधि ग्यांनावी अवधि ग्यांन ने रोके, मनपरज्यावर्णी मनपरज्या आडी। केवल ग्यांनावर्णी केवल ग्यांन रोके, यां पांचां में पांचमी प्रकत जाडी।। ८. ग्यांनावर्णी कर्म षयउपसम हुवै, जब पामें छै च्यार ग्यांन । केवल ज्ञानावर्णी तो खयोपसम न हुवै, आ तो खय हुवा पामें केवलग्यांन ।। ६. दर्शणावणी कर्म री नव प्रकृत छै, ते देखवानें सुणवादिक आडी। जीवां ने जाबक कर देवे आंघा, त्यां में केवल दर्शणावर्णी सगलां में जाडी।। १०. चषू दर्शणावणी कर्म उदे तूं, जीव चषू रहीत हुवै अंध अयांण । अचषू दर्शणावर्णी कर्म रे जोगे, च्यारूं इंद्रीयां री पर जाये हांण ।। ११. अवधि दर्शणावर्णी कर्म उदे सूं, अवधि दर्शन न पामें जीवो। केवल दर्शणावी तणे परसंगे, उपजे नहीं केवल दरसण दीवो । १२. निद्रा सुतो तो सुखे जगायो जागे, निद्रा २ उदे दुखे जोगे छै ताम। बेठां उभा जीव ने नींद आवे, तिण नींद तणो छै प्रचला नाम ।। १३. प्रचला २ नींद उदे सूं जीव नें, हालता चालतां नींद आवे । पांचमी नींद छै कठिण थीणोदी, तिण नींद सूं जीव जाबक दब जावे।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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