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________________ पुण्य पदार्थ ( ढाल : २) : टिप्पणी १८-१६ आगम उल्लिखित हेतुओं में शील राहित्य और व्रत राहित्य का नाम नहीं है । नरकायुष्य अशुभ है। उसके बंध हेतु भी अशुभ हैं। १८. तिर्यंच आयुष्य के बंध - हेतु ( गा० २४ ) : इन बंध-हेतुओं का वर्णन 'भगवती सूत्र' में इस प्रकार है : तिरिक्खजोणियाउअकम्मासरीर - पुच्छा । गोयमा ! माइल्लयाए, नियडिल्लयाए अलियवयणेणं कूडतुल-कूडमाणेणं, तिरिक्खजोणियाउअकम्मा० जाव पयोगबंधे । (भग० : ८.६) यहाँ तिर्यंचायुष्कार्मणशरीरप्रयोगबंध के निम्न हेतु कहे गये हैं : (१) मायावीपन, (२) निकृति भाव - कापट्य, (३) अलीक वचन - झूठ, (४) झूठे तोल- माप और (५) तिर्यंचायुष्कार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म का उदय । २२५ 'स्थानाङ्ग' का पाठ इस प्रकार है : चउहिं ठाणेहिं जीवा तिरिक्खजोणियत्ताए कम्मं पगरेंति, तं० - माइल्लता णियडिल्लताते अलियवयणेणं कूडतुलकूडमाणेणं (४.४.३७३) ‘तत्त्वार्थसूत्र' में माया, निःशीलत्व और अव्रतत्व-ये तिर्यंच आयुष्यबंध के हेतु कहे गये हैं : माया तैर्यग्योनस्य (६.१७); निःशीलव्रतत्वं च सर्वेषाम् (६.१६) । आगमोक्त और 'तत्त्वार्थसूत्र' में वर्णित हेतुओं का पार्थक्य स्वयं स्पष्ट है। अशुभ तिर्यंच आयुष्य के बंध हेतु भी अशुभ हैं । १९. मनुष्यायुष्य के बंध - हेतु ( गा०२५ ) : 'भगवतीसूत्र' में मनुष्यायुष्य कर्म के बंध-हेतुओं का वर्णन इस प्रकार है : मणुस्साउयकम्मासरीर - पुच्छा। गोयमा ! पगइभद्दयाए, पगइविणीययाए, साणुक्कोसणयाए, अमच्छरियाए, मणुस्साउयकम्मा० जाव पयोगबंधे । (८.६) मनुष्यायुष्कार्मणशरीरप्रयोगबंध के हेतु ये हैं : (१) प्रकृति की भद्रता, (२) प्रकृति की विनीतता, (३) सानुक्रोशता - सदयता,
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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