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नव पदार्थ
उपचार विनय से युक्त होना।
(११) आवश्यक । तत्त्वार्थ : :आवश्यकापरिहाणि' । सामयिक आदि छह आवश्यकों का भावपूर्वक अनुष्ठान करना, उनका भावपूर्वक कभी भी परित्याग न करना।
(१२) शील-व्रतानतिचार : हिंसा, असत्य आदि से विमरण रूप मूल गुणों को व्रत कहते हैं। उन व्रतों के पालन में उपयोगी उत्तर गुणों को शील कहते हैं। उनके पालन में जरा भी प्रमाद न करना। उनका अनतिचार पालन करना । व्रत और शील में निरवद्य वृत्ति।
(१३) क्षणलव संवेग : तत्त्वार्थ : 'अभीक्ष्ण संवेग' । सांसारिक भोगों के प्रति सतत-नित्य उदासीनता।
(१४) तप : अनशन आदि तप। शक्ति को न छिपाकर मोक्षमार्ग के अनुकूल शरीर-क्लेश यथाशक्ति तप है।
(१५) त्याग : साधु को प्रासुक एषणीय दान । यथाशक्ति यथाविधि प्रयुज्यमान आहार, अभय और ज्ञान-दान यथाशक्ति त्याग है।
१. (क) जयाचार्य (भ्रम विध्वंसनम्) पृ० ३८१
(ख) सिद्धसेन टीका २. (क) भाष्य : सामायिकादीनामावश्यकानां भावतोऽनुष्ठानस्यापरिहाणिः ।
(ख) सर्वार्थसिद्धि : षण्णामावश्यकक्रियाणां यथाकालं प्रवर्तनभावश्यकापरिहाणिः । ३. (क) भाष्य : शीलव्रतेष्वात्यन्तिको भृशमप्रमादऽनतिचारः। (ख) सिद्धसेन टीका : शीलमुत्तरगुणाः पिण्डविशुद्धिसमितिभावना (दयः) प्रतिमाभिग्रहलक्षणा...
व्रतग्रहणात् पञ्च महाव्रतानि रजनीभक्ततिरतिपर्यवसानान्याक्षिप्तानि। (ग) सर्वार्थसिद्धि : अहिंसादिषु व्रतेष तत्प्रतिपालनार्थेषु च क्रोधवर्जनादिषु शीलेषु निरवद्या
वृत्तिः शीलव्रतेष्वनतीचारः। ४. सर्वार्थसिद्धि : संसारदुःखान्नित्यभीरुता संवेगः ५. सर्वार्थसिद्धि : अनिगूहितवीर्यस्य मार्गाविरोधि कायक्लेशस्तप ६. (क) भाष्य : यथाशक्तिस्त्यागः
(ख) नायाधम्मकहाओ ८.६६ अभयदेव टीका : चियाए त्यागेन-यत्तिजनोचित दानेन (ग) सवार्थसिद्धि : त्यागो दानम्। तत्त्रिविधम्-आहारदानमभयदानं ज्ञानदानं चेति।
तच्छक्तितो यथाविधि प्रयुज्यमानं त्याग इत्युच्यते। (घ) सिद्धसेन टीका : स्वस्य न्यायार्जितस्यानुकम्पानिर्जितात्मानुग्रहालम्बनं भूतेभ्यो
विशेषतस्तु विधिना यतिजनाय दानम्।