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________________ २१२ नव पदार्थ ८. वंदना से निर्जरा और पुण्य दोनों (गा० ११) : 'उत्तराध्ययन' का सम्बंधित पाठ इस प्रकार है : वन्दणएणं भन्ते जीवे किं जणयइ। व० नीयागोयं कम्म खवेइ । उच्चागोयं कम्म निबन्धइ । सोहग्गं च णं अपडिहयं आणाफलं निव्वत्तेइ दाहिणभावं च णं जणयइ ।। (२६.१०) शिष्य ने पूछा-"भगवन् ! जीव वन्दना से क्या उत्पन्न करता है ?" भगवान महावीर ने उत्तर दिया-"नीच गोत्रकर्म का क्षय करता है, उच्च गोत्रकर्म का बंध करता है, अप्रतिहत सौभाग्य तथा आज्ञा-फल प्राप्त करता है और दाक्षिण्य भाव उत्पन्न करता है।" ___ 'वन्दना' का अर्थ है मुनियों का स्तवन करना । यह शुभ योग है। नीच गोत्रकर्म का क्षय निर्जरा है। उच्च गोत्र का बंध पुण्य-कर्म प्रकृति का बंध है। शुभ योग से निर्जरा होती है और सहज रूप से पुण्य का बंध होता है, यह सिद्धान्त इस प्रश्नोत्तर से अच्छी तरह सिद्ध होता है। ९. धर्मकथा से निर्जरा और पुण्य दोनों (गा० १२) : 'उत्तराध्ययन सूत्र के जिस पाठ का यहाँ संकेत है, वह इस प्रकार है : धम्मकहाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । ध० निज्जरं जणयइ । धम्मकहाए णं पवयणं पभावेइ । पवयणपभावेणं जीवे आगमेसस्स भद्दत्ताए कम्मं निबन्धइ ।। २६.२३ इसका अर्थ है : "हे भन्ते ! धर्मकथा से जीव क्या उत्पन्न करता है ?" "वह निर्जरा करता है। धर्मकथा से प्रवचन की प्रभावना होती है। प्रवचन की प्रभावना से जीव आगामिक काल में भद्र रूप कर्मों का बंध करता है।" धर्मकथा स्वाध्याय तप का भेद है'। तप का लक्षण ही कर्मों को दूर करना है। टीकाकार ने धर्मकथा से शुभानुबन्धि शुभकर्म का फल बतलाया है। १. उत्त० ३०.३४ वायणा पुच्छणा चेव तहेव परियट्टणा। अणुप्पेहा धम्मकहा सज्झाओ पंचहा भवे ।। २. धर्मकथा आगमिष्यतीति आगमः- आगामी कालस्तस्मिन् शश्वद्भद्रतया-अनवरतकल्याणतयो पलक्षितं कर्म निबध्नाति, शुगानुबन्धिशुगमुपार्जयतीति भावः
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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