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________________ १६६ नव पदार्थ ५४. नमसकार अनेरा ने कीयां थकां रे लाल, जो लागे छै एकंत पाप हो। तो अनादिक सचित दीयां थकां रे लाल, कुण करसी पुन री थाप हो।। ५५. निरवद करणी में पुन नीपजे रे लाल, सावध करणी सूं लागे पाप हो। ते सावद्य निरवद किम जांणीये रे लाल, निरवद में आग्या दे जिण आप हो।। ५६. अन पाणी पातर नें बेहरावीयां रे लाल लेण सयण वस्त्र बेहराय हो। त्यांरी श्रीजिण देवे आगना रे लाल, तिण ठामें पुन बंधाय हो।। ५७. अन पाणी अनेरा ने दीयां रे लाल, लेण सेण वसतर देवे ताय हो। त्यांरी देवे नहीं जिण आगन्यारे लाल, तिणरे पुन किहां थी बंधाय हो।। ५८. सुपातर नें दीयां पुन नीपजे रे लाल, ते करणी जिण आगना माय हो। जो अनेरा ने दीयाई पुन नीपजै रे लाल, तिणरी जिण आगना नहीं काय हो।। ५६. ठाम ठाम सुतर में देखलो रे लाल, निरजरा ने पुन री करणी एक हो। __ पुन हुवे तिहां निरजरा रे लाल, तिहां जिन आगनां छै वशेष हो।। ६०. नव प्रकारे पुन नीपजे रे लाल, ते भोगवे बयांलीस प्रकार हो। ते पुन उदे हुवे जीवरे रे लाल, सुख साता पामें संसार हो।। ६१. ए पुन तणा सुख कारिमा रे लाल, ते विणसंतां नहीं वार हो। तिणरी वंछा नहीं कीजीये रे लाल, ज्यूं पामें भव पार हो।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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