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________________ १८६ नव पदार्थ १५. सुबाहू कुमर आदि दस जणा रे लाल, त्यां साधां ने असणादिक वेहराय हो। त्यां बांध्यो आउषो मिनखा रो रे लाल, कह्यो विपाक सुतर रे मांय हो।। १६. प्राण भूत जीव सत्व ने रे लाल, दुःख न दे उपजावे सोग नाय हो। अजुरणया ने अतिप्पणया रे लाल, अपिट्टणया परिताप नहीं दे ताय हो।। १७. ए छ प्रकारे बंधे सात वेदनी रे लाल, उलटा कीधां असाता थाय हो। भगोती सतषंध सातमें रे लाल, छठा उदेसा मांय हो ।। १८. करकस वेदनी बंधे जीवरे रे लाल, अठारे पाप सेयां बंधाय हो। नहीं सेव्यां बंधे अकरकस वेदनी रे लाल, भगोती सातमां सतक छठा मांय हो।। १६. कालोदाई पूछयो भगवान ने रे लाल, सुतर भगोती मांहि ए रेस हो। किल्याणकारी कर्म किण विध बंधे रे लाल, सातमें सतक दसमें उदेस हो।। २०. अठारे पाप थानक नहीं सेवीयां रे लाल, किल्याणकारी कर्म बंधाय हो। अठारे पाप थानक सेवे तेह सूं रे लाल, बंधे अकिल्याणकारी कर्म आय हो।। २१. प्रांण भूत जीव सत्व में रे लाल, बहु सबदे च्यांरूइ मांहि हो। . ___ त्यांरी करे अणुकम्पा दया आणनें रे लाल, दुःख सोग उपजावे नाहि हो।। २२. अजूरणया में अतिप्पणया रे लाल, अपिट्टणया ने अपरिताप हो। यां चवदे सं बंधे साता वेदनी रे लाल, यां उलटा सूं बंधे असाता पाप हो।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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