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________________ १३६ नव पदार्थ २. च्यार कर्म ते एकंत पाप छै, च्यार कर्म छै पुन नें पांप हो लाल । पुन कर्म थी जीव नें, साता हुवे पिण न हुवे संताप हो लाल । ३. अनंता प्रदेस छै पुन तणा, ते जीव रे उदय हुवे आय हो लाल । अनंतो सुख करे जीव रे, तिणसुं पुन री अनंती परज्याय हो लाल ।। ४. निरवद जोग वरते जब जीव रे, सुभपणे लागे पुद्गल ताम हो लाल । त्यां पुदगल तणा छै जू जूआ, गुण परिणामे त्यांरा नाम हो लाल ।। ५. साता वेदनीय पणे परणम्यां, साता पणे उदय आवे ताम हो लाल । ते सुखसाता करें जीव नें, तिणसूं साता वेदनी दीयो नांम हो लाल ।। ६. पुदगल परणम्या सुभ आउखापणे, घणो रहणो वांछै तिण ठांम हो लाल । जाणे जीविये पिण न मरजीये, सुभ आउखो तिणरो नाम हो लाल ७. केइ देवता नें केइ मिनख रो, सुभ आउखो पुन ताय हो लाल । जुगलीया तिर्यंच रो आउखो, दीसे छै पुन रे मांय हो लाल ।। ८. सुभ नामपणे आए परणम्यां, ते उदय आवे जीव रे ताय हो लाल । अनेक वाना सुध हुवे तेह सूं, नाम कर्म कह्यो जिणराय हो लाल ।। ६. सुम आउखा रा मिनख ने देवता, त्यांरी गति ने आणपूर्वी सुध हो लाल । केइ जीव पंचिन्द्री विसुध छै, त्यांरी जात पिण पुन विसुध हो लाल ।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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