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________________ अजीव पदार्थ : टिप्पणी ३२ ११७ उदाहरण स्वरूप यदि हम जल को उबालते जायँ तो हम देखेंगे कि कुछ समय के बाद समूचा जल विलीन हो गया। जब हम एक मोमबत्ती को जलाते हैं तो देखते हैं कि मोम और कमड़े की बत्ती दोनों का अस्तित्व नहीं रहा । यदि मेगनेसियम के तार के एक टुकड़े को अग्नि में खूब गर्म किया जाय तो देखा जाता है कि वह एक तेज. प्रकाश देने लगता है और अन्त में एक सफेद वस्तु का अस्तित्व छोड़ देता है जिसका वजन तार के टुकड़े से अधिक होता है। एक छोटे से बीज में से विशालकाय वृक्ष लहलहायमान होता है। तब हम अपने चारों ओर घटित होती हुई विलय और सृष्टि की इसय लीला को देखते हैं तो सहज ही प्रश्न उठता है क्या जल नष्ट हो गया ? क्या मोम और बत्ती नाश को प्राप्त हो गये ? क्या सफेद पदार्थ नया उत्पन्न हुआ है ? क्या वृक्ष के शरीर की उत्पत्ति हुई है ? जैन पदार्थ-विज्ञान कहता है जल, मोमबत्ती, मेगनेसियम और बीज का शरीर आदि सब कृत्रिम हैं क्योंकि वे द्रव्य पुद्गलों से निर्मित हैं। वे द्रव्य-पुदगलों की भिन्न-भिन्न पर्याय-रूप-अवस्थान्तर है। भाव पुद्गल है। जो नाश-विलय और उत्पत्ति देखी जाती है वह भावों-पर्यायों और कृत्रिम पौद्गालिक वस्तुओं की है। वास्तव में ही भाव पुद्गलों का कृत्रिम पौद्गलिक पदार्थों का नाश और विलय होता है परन्तु भाव-पर्याय-परिवर्तन पुद्गल-द्रव्य के ही होते हैं। वे ही इन भौतिक पौद्गलिक पदार्थों के आधार होते हैं उनका नाश नहीं होता। वे हमेशा ध्रुव रहते हैं। कृत्रिम जल का नाश होता है, पर जिन द्रव्य-पुद्गलों से वह निर्मित है उनका नाश नहीं होता। वृक्ष के शरीर की उत्पत्ति होती है, जिन द्रव्य-पुद्गलों के आधार पर उसकी उत्पत्ति हुई वे पहले भी थे, अब भी हैं और अनुत्पन्न हैं। मैगनेसियम के भारी अवशेष पदार्थ की उत्पत्ति हुई है, पर जिन द्रव्य-पुद्गलों को ग्रहण कर ऐसा हुआ कहै वे पहले भी मौजूद थे। द्रव्य-पुद्गल की अविनाशशीलता और भाव-पुद्गल की विनाशशीलता को अन्य प्रकार से इस रूप में बताया जा सकता है : पुद्गल के चार भाग बतलाये हैं-(१) स्कंध, (२) स्कंध-देश, (३) स्कंध प्रदेश और (४) परमाणु । स्कंध-देश और स्कंध के कल्पना-प्रसूत विभाग हैं। क्योंकि स्कंध के जितने भी टुकड़े किये जाते हैं वे सब स्वतंत्र स्कंध होते हैं। केवल प्रदेश को अलग करने पर स्वतंत्र परमाणु प्राप्त होता है। देश और प्रदेश की स्वतंत्र उपलब्धि नहीं होती। स्वतंत्र अस्तित्व स्कंध अथवा परमाणु का ही होता है। इसी से वाचक उमास्वाति ने कहा है अणवः स्कंधाश्च' (५.२५)-पुद्गल परमाणु रूप और स्कंध रूप है। यही बात ठाणांङग में कही गई है। १. ठाणाङ्ग २.३.८२ दुविहा पोग्गला पं० तं० परमाणुणेग्गला चेव नोपरमाणुपोग्गला चेव ।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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