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________________ το परिगणना की जाय तो वह धर्मास्तिकाय एक प्रदेश कहा जायेगा। दो प्रदेश, तीन प्रदेश यावत् एक कम सर्व प्रदेश जैस अंशों-भागों की कल्पना की जाय तो ये धर्मास्तिकाय के देश होंगे। एक प्रदेश भी कम नहीं - समूचा धर्मास्तिकाय स्कन्ध है। इस तरह प्रदेश-कल्पना से धर्मास्तिकाय के स्कन्ध, देश और प्रदेशों का विभाग परिकल्पित है । जिस तरह धर्मास्तिकाय द्रव्य के स्कन्ध, देश और प्रदेश ये तीन विभाग होते हैं उसी तरह अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय के भी तीन-तीन भाग होते हैं। काल द्रव्य के ऐसा विभाग नहीं होता । वह एक अद्धासमय रूप होता है - यह हम आगे जाकर देखेंगे । इसी विवक्षा से आगमों में अरूपी अजीवों के दस भाग बतलायें हैं ' । पुद्गलास्तिकाय का एक भेद परमाणु के नाम से अधिक कहा गया है। इस तरह उसके स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणु ये चार भाग होते हैं। इस सम्बन्ध में अधिक विवेचन आगे चल कर आने वाला है । यहाँ जो कहा गया है कि समूची अस्तिकाय ही अस्तिकाय होती है, उसका एक अंश नहीं, इस विषय का एक सुन्दर वार्तालाप हम यहाँ देते है : "हे भदन्त ! धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश धर्मास्तिकाय है ऐसा कहा जा सकता है ?" "हे गौतम! यह अर्थ संगत नहीं। इसी तरह दो, तीन, चार, पाँच, छः, सात, आठ, नव, दस, संख्येय और असंख्यये प्रदेश भी धर्मास्तिकाय नहीं कहे जा सकते ।" "हे भदन्त ! धर्मास्तिकाय के प्रदेश धर्मास्तिकाय है क्या ऐसा कहा जा सकता है ?" "हे गौतम! यह अर्थ संगत नहीं ।" “हे भदन्त ! एक प्रदेश न्यून धर्मास्तिकाय धर्मास्तिकाय है ऐसा कहा जा सकता है ?" १. नव पदार्थ (क) उत्त० ३६ - ५-६ : धम्मत्थिकाए तद्देसे तप्पएसे च आहिए। अहम्मे तस्स देसे य तप्पएसे य आहिए । । आगासे तस्स देसे य तप्पएसे य आहिए । अद्धासमए चेव अरूपी दसहा भवे ।। (ख) समवायाङ्ग सू० १४६
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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