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प्रश्न १०६. महामन्त्र णमोकार के निरादर का क्या फल होता है?
किसी पौराणिक उदाहरण के माध्यम से उत्तर दीजिए।
उत्तर:
महामन्त्र के निरादर का फल - आठवें चक्रवर्ती सुभीम का रसोइया बड़ा स्वामी भक्त था । उसने एक दिन सुसीम को गरम गरम खीर परोस दी । सुमीम ने गर्म खीर खा ली । उनकी जीभ जलने लगी । बस क्रोध में भरकर खीर का पूरा वर्तन रसोइए के ऊपर उंडेल दिया । इससे वह तुरंत मरकर व्यन्तर देव हुआ । लवण समुद्र में रहने लगा । उसने अवधिज्ञान से अपने पूर्वभव की जानकारी प्राप्त की । उसके मन में चक्रवर्ती से बदला लेने की बात ठन गयी । बस वह तपस्वी का वेष बनाकर और कुछ स्वादिष्ट फल लेकर चक्रवर्ती सुमीम के पास पहुँचा । उसने वे फल सुसीम चक्रवर्ती को दिये । फल बहुत स्वादिष्ट थे । चक्रवर्ती ने और खाने की इच्छा प्रकट की । तब तपस्वी ने कहा, "मैं लवण समुद्र के एक टापू में रहता है, वहीं ये फल प्राप्त होते हैं । आप मेरे साथ चलिए और यथेच्छ रूप से खाइए । चक्रवर्ती लोभ का संवरण न कर सके और उस तपस्वी (व्यंतर) के साथ चल दिये। जब व्यन्तर सुमीम को लेकर समुद्र के बीच में पहुँच गया, तो तुरन्त वेष बदल कर क्रोध पूर्वक बोला, "दुष्ट चक्रवर्ती! जानता है मैं कौन हूँ? मैं ही तेरा पुराना पाचक हूँ, रसोइया हूँ । मैं तुझसे बदला लूँगा।" चक्रवर्ती अत्यन्त असहाय होकर णमोकार मन्त्र का पाठ करने लगे। इस महामन्त्र की महाशक्ति के सामने व्यंतर की विद्या बेकार हो गई । तब व्यन्तर ने एक उपाय निकाला । उसने चक्रवर्ती से कहा, यदि अपने प्राणों की रक्षा चाहते हो तो णमोकार मन्त्र को पानी में लिखकर उसे अपने पैर के अंगूठे से मिटा दो । चक्रवर्ती ने भवभीत होकर तुरन्त णमोकार मन्त्र को उंगली से पानी में
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