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मेरा नियम है कि जब मैं रात को सोता हूँ तो णमोकार मन्त्र को पढ़ता हुआ सो जाता हूँ। एक मरतबा, जाड़े की रात का जिक्र है कि मेरे साथ चारपाई पर एक बड़ा सांप लेटा रहा, पर मुझे उसकी खबर नहीं । स्वप्न में जरूर ऐसा मालूम हुआ कि जैसे कि कह रहा हो कि उठ सांप है । मैं दो चार मरतबे उठा भी और उठकर लालटेन जलाकर नीचे ऊपर देखकर फिर लेट गया, लेकिन मन्त्र के प्रभाव से, जिस ओर साँप लेटा था, उधर से एक बार भी नहीं उठा । जब सुबह हुआ, मैं उठा और चाहा कि विस्तर लपेट लूँ, तो क्या देखता हूँ कि बड़ा मोटा साँप लेटा हुआ है । मैंने जो पल्ली खींची तो वह झट उठ बैठा और पल्ली के सहारे नीचे उतर कर अपने रास्ते चला गया । यह सब महामन्त्र णमोकार के श्रद्धापूर्ण पाठ का ही प्रभाव था जिससे एक विषेला साँप भी अनुशासित हुआ। दसरे अभी दो तीन माह का जिकर है कि जब मेरी बिरादरी वालों को मालूम हुआ कि मैं जैनमत पालने लगा हूँ, तो उन्होंने एक सभा की, उसमें मुझे बुलाया गया । मैं जखौरा से झाँसी जाकर सभा में शामिल हुआ । हर एक ने अपनी राय के अनुसार बहुत कुछ कहा-सुना और बहुत से सवाल पैदा किये, जिनका कि मैं जवाब भी देता गया । बहुत से लोगों ने यह भी कहा कि ऐसे आदमी को मार डालना ही ठीक है । अपने धर्म से दूसरे धर्म में यह न जाने पाये । अन्त में सब चले गये । मैं भी अपने घर आ गया । जब शाम का समय हुआ - यानी सूर्य अस्त होने लगा तो मैंने सामायिक करना आरम्भ किया और जब सामायिक से निश्चिन्त होकर आँखें खोली तो देखता हूँ कि एक बड़ा साँप मेरे इर्द गिर्द चक्कर लगा रहा है और दरवाजे पर एक बर्तन रखा हुआ मिला, जिससे मालूम हुआ कि कोई इसमें बन्द करके इस सांप को छोड़ गया है । छोड़ने वाला मुझे मारना चाहता था।
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