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________________ प्रश्न ८९. अरिहन्त परमेष्ठी के मूल गुण तो ४ ही हैं फिर ४६ क्यों कहे गये हैं? सभी अरिहन्तों के मूल गुण तो आत्मिक होते हैं और वे चार पातिया कर्मों के क्षय से होते हैं, परन्तु तीर्थंकर अरिहन्तों के ४२ गुण अधिक होते हैं जो पुण्याश्रित होते हैं - अतिशयात्मक होते हैं और संसार समाप्त होते ही अर्थात शरीर नष्ट होते ही नष्ट हो जाते हैं । ये ३४ अतिशय और ८ प्रातिहार्य हैं। प्रश्न ९०. सिद्ध परमेष्ठी का स्वरूप क्या है? उनके ८ आत्मिक गुण गिनाइए। उत्तर: सिद्ध परमेष्ठी का स्वरूप - जो आठ कर्मों के नाश कर्ता, आत्मिक ८ गुणों से युक्त, सर्वोत्कृष्ट, लोकाग्र में स्थित और नित्य हैं, वे सिद्ध हैं । सिद्धों के आठ (आत्मिक गुण) - गुण १. ज्ञानावरणी कर्म के क्षये से - अनन्त ज्ञान २. दर्शनावरणी - अनन्त दर्शन ३. मोहनीय - क्षायिक सम्पम्त्व घातिया कर्मों के क्षय से ४. अन्तराय - अनन्तवीर्य ५. वेदनीय - अन्यावाधत्त्व (इन्द्रियजसुख-दुख का अभाव) ६. आयु - अवगाहनत्व (जन्म मरण रहितता) ७. नाम . अशरीरत्व ८. गोत्र - अगुरुलघुत्व (ऊंचनीच का अभाव) (५ से ८ तक अघातिया कर्म हैं इनका क्षय शरीर छोड़ने से कुछ समय पूर्व होता है) कर्म 12182
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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