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प्रश्न ७७. अर्ह, अहम्, अर्हन, अर्हद, अर्हा, अरिहन्त, अरहन्त,
अरुहन्त-इनमें से कौन सा शब्द अरिहन्त परमेष्ठी के
गुणों का प्रतिनिधित्व करता है? उत्तर : णमोकार महामन्त्र में प्राकृत भाषा के अनुरूप अरिहन्त और
अरहन्त ये दो रूप ही बनते हैं और सभी ग्रन्थों में इनका ही उल्लेख है । ये दोनों शुद्ध हैं । फिर भी अरिहन्त शब्द अधिक गुणात्मक और शक्तिशाली हैं । इ स्वर तालु द्वारा उच्चरित है और ऊर्ध्वगामिता में सहायक भी । अन्य रूप तो व्यक्तिश: मुखविवर के
कारण चल पड़े हैं या मन्त्रगत न हो कर एक स्वतन्त्र इकाई हैं। प्रश्न ७८. नमस्कार महामन्त्र में नमन मुख्य है । यह नमन चैतन्य
(शुद्धात्माओं) को है। समझाइए। णमो पद भक्त की विनय, लघुता और जिज्ञासा का द्योतक है । यह पद आराध्य की गुणात्मक सर्वोचता और गुरुता का उद्घाटक
उत्तर:
णमोपद के व्यावहारिक नमन (शारीरिक नमन) का नहीं अपितु व्यंग्यार्थ परक आध्यात्मिक - भीतरी नमन का महत्व है। नमन जिन्हें किया गया है वे सभी - परमेष्ठी संसार से विरक्त शुद्ध चैतन्य में लीन हैं । अतः भक्त का शुद्ध भादात्मक नमन ही अपेक्षित है । जड़ जगत् से विरक्ति और शुद्ध परमात्मत्त्व में अनुरक्ति इस नमन का प्राण तत्त्व है। णमोकार महामन्त्र में तीन पद ७-७ अक्षरों के हैं। क्या ७ संख्या का कोई विशेष महत्व है? संख्या विज्ञान की दृष्टि से अंक ९ और सात का विशेष महत्व है । ये अंक जब आयु में जुड़ते हैं तो उस वर्ष कुछ न कुछ चमत्कार होता है।
प्रश्न ७९.
उत्तर:
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