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________________ निष्कर्ष. मन्त्र की भाषा प्राकृत है, परमकुंडली आकार है, आकाश तत्त्व है और मूर्धन्य ध्वनि के कारण आध्यात्मिक ऊर्जा के आस्फालन में परम सहायक है अत: ण पाठ ही शुद्ध है। प्रश्न २४. इस महामन्त्र का सूत्रात्मक संक्षिप्त रूप क्या है? उत्तर - १. संक्षिप्तता और सुकरता के कारण इस मन्त्र को ओंकारात्मक भी माना जाता है। ओंकार में पंच परमेष्ठी इस प्रकार से गर्भित हैं - १. अरिहन्त (आरंभ अक्षर) - अ २. अशरीरी (सिद्ध) - अ अ + अ आ ३. आचार्य - आ ४. उपाध्याय उ आ + उ = ओ ५. मुनि (साधु) . म् ओ + म् = ओम् ओंकारं बिन्दु संयुक्तं नित्यं ध्यायन्ति योगिनः । कामदं मोक्षदं चैव ओंकाराय नमो नमः ॥ असिआ उसा णमोकार महामन्त्र का एक संक्षिप्त रूप और है - इस प्रकार है - अरिहन्त . अ. सिद्ध - सि आचार्य . आ उपाध्याय - उ साधु - सा इस संक्षेपीकरण की प्रमुखता इस बात में है कि इसमें सभी परमेष्ठियों के मूल नाम का अविकृत प्रथम अक्षर ज्यों का त्यों नोट : प्रतीकात्मकता महामन्त्र का मूल है । वर्ण और रंग भी प्रतीकात्मक (व्यापक सत्य के संकेत चिन्ह) हैं। ये सब साधन हैं - साध्य नहीं । 21848
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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