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________________ 3 128 राजद्वारे श्मशाने च, संग्रामे शत्रुसंक्टे। व्याघ्रचौरादिसर्पादि, भूतप्रेत भयाश्रिते॥18॥ अकाले मरणे प्राप्ते दारिद्रयापत्समाश्रिते। आपुत्रत्वे महादुखे, मूर्खत्वे रोगपीडिते॥19॥ डाकिनी शाकिनी ग्रस्ते, महाग्रहगणादिते। नत्तारेऽध्ववैषम्ये, व्यसने चापदि स्मरेत् ॥20॥ प्रातरेव समत्थाय, यः पठेज्जिनपंजरं । तस्य किंचिद्भयं नास्ति, लभते सुखसम्पदः ॥21॥ जिनपंजरनामेदं यः, स्मरत्यनुवासरम् । कमलप्रभ राजेन्द्र, श्रीयं स लभते नरः ॥22॥ प्रातः समुत्थाय पठेत्कृतज्ञो, यः स्तोत्रमेतज्जिनपिंजस्य । आसादयेत सः कमलप्रभाख्यं, लक्ष्मी मनोवांछितपूरणाय ॥23॥ श्री रुद्रपल्लीय वरव्य एवगच्छे, देवप्रभाचार्यपहाजहंसः । वादीन्द्रचूडामणिरैष जेनो, जीयादसौ श्री कमलप्रभाख्याः ॥24॥ प्राचीन मन्त्र शास्त्रों में आत्मरक्षा इन्द्र कवच का वर्णन मिलता है। "मंत्रधिराज चिन्तामणि श्री णमोकार महामंत्र कल्प" आदि ग्रन्थों में इस प्रकार है 1. ॐ णमो अरिहंताणं ह्यां हृदयं रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा । 2. ॐ णमो सिद्धाणं ह्रीं शिरो रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा। 3. ॐ णमो आयरियाणं हूँ शिखां रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा। 4. ॐ णमो उवज्झायाणं हैं एहि एहि भगवति वज कवचं वजिणि वजिणि रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा। 5. ॐ णमो लोए सव्व साहूणं हः क्षिप्र क्षिप्र साधय वजहस्ते शूलिनि दुष्टान् रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा। णमोकार मन्त्र व्रतों का विधान भी है। जो 18 मास में 35 दिन में होता है। मन्त्र साधना के क्षेत्र में, अनुभवी साधकों से जानकारी प्राप्त कर लेना उपयोगी रहता है। णाणसायर (जेन त्रैमासिक) का मोकार विशेषांक प्रकाशित हुआ है। जो बहुत चचित रहा। साधक उसे भी देखें । यदि आपकी कोई समस्या या जिज्ञासा है, तो आप निसंकोच लिख सकते हैं। मेरा दृढ़ विश्वास है कि आपकी हर समस्या का समाधान णमोकार मन्त्र में है, आशा है आप इस महामन्त्र की आराधना और साधना कर अपने जीवन को पावनता के उच्च शिखरों पर अग्रसर करेंगे। भवडीया दिल्ली, 16 अक्टूबर 1993 कुसुम जैन सम्पादिका-णाणसायर (जन नमासिक)
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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