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उच्चार-पासवण-भूमि की प्रतिलेखना न की हो, उसकी प्रमार्जना न की हो, पौषध व्रत का सम्यक् पालन न किया हो, पौषध में निद्रा, विकथा, प्रमाद का सेवन किया
जाते आवस्सही-आवस्सही न कहा हो, आते निसिही-निसिही न कहा हो, शक्रेन्द्र महाराज की आज्ञा न ली हो, थोड़ी जगह पूंजकर घनी जगह परठा हो,
परठकर तीन बार वोसिरामि-वोसिरामि न कहा हो, तो
जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं। | द्वादश अतिथि-संविभाग व्रत | बारहवाँ अतिथि-संविभाग व्रतसमणे निग्गंथे, फासुयएणं, एसणिजेणं, असण-पाण-खाइमसाइमेणं, वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पाय
श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र