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न करेमि, न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा, ऐसी मेरी श्रद्धा, प्ररूपणा है, सामायिक के अवसर पर स्पर्शना करके शुद्ध होऊँ। ऐसे नवमें सामायिक व्रत के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोऊँ
सामायिक में मन, वचन, काया के अशुभ योग प्रवर्ताये हों,
सामायिक की संभालना न की हो, अधूरी पारी हो, तो जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं। | दशम देशावकाशिक व्रत | दशवाँ देशावकाशिक व्रत, दिन प्रति प्रभात से प्रारम्भ करके पूर्वादिक छहों दिशाओं की जितनी भूमिका की मर्यादा रक्खी हो, उसके उपरान्त आगे जाकर
श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र
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