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| षष्ठ दिशा व्रत । छट्ठा दिसि व्रत-उड्ढ दिसि का यथा परिमाण, अहो दिसि का यथा परिमाण, तिरिय दिसि का यथा परिमाण,
एवं यथा परिमाण किया है उसके उपरान्त स्वेच्छा से काया कर
पाँच आस्रव सेवन का पच्चक्खाण, जावज्जीवाए, दुविहं तिविहेणं, न करेमि, न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा,
ऐसा छट्ठा दिशा परिमाण व्रत के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोऊँऊर्ध्व दिशा के परिमाण का अतिक्रमण किया हो, अधो दिशा के परिमाण का अतिक्रमण किया हो, तिर्यक् दिशा के परिमाण का अतिक्रमण किया हो, क्षेत्र वृद्धि की हो,
क्षेत्र परिमाण के विस्मृत हो जाने से क्षेत्र परिमाण का अतिक्रमण किया हो, तो
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२. कोई ‘एगविहं तिविहेणं' भी कहते हैं।
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श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र