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________________ इस प्रकार श्रीसमकितरत्न पदार्थ के विषय में जे कोई अतिचार लगा हो तो आलोऊँश्रीजिन वचन में शंका की हो, पर - दर्शन की वांछा की हो, धर्मफल के प्रति संदेह किया हो, पर - पाखण्डी की प्रशंसा की हो, पर- पाखण्डी का संस्तव (परिचय) किया हो, तो मेरे सम्यक्त्वरूप रत्न पर मिथ्यात्वरूपी रज-मैल लगा हो, तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं । प्रथम अहिंसा अणुव्रत पहला अणुव्रत - थूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सजीव - बेइंदिय, तेइंदिय, चउरिंदिय, पंचिंदिय, जान के, पहचान के, संकल्प करके स्व-सम्बन्धी शरीर में पीड़ाकारी सापराधी को छोड़ निरपराधी को मारने की बुद्धि से मारने का पच्चक्खाण जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं न करेमि, न कारवेमि, ७४ श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र
SR No.006269
Book TitleShravak Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushkarmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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