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सुविहिं च पुष्पदंतं, सीअल-सिजंस-वासुपुजं च। विमलमणंतं च जिणं, धम्म संतिंच वंदामि ॥३॥ कुंथुअरंच मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणंच। वंदामि रिट्टनेमिं, पासं तह वद्धमाणं च ॥४॥ एवं मए अभिथुआ, विहूय-रयमला, पहीण जरमरणा। चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु ॥५॥ कित्तिय-वंदिय-महिया, जे एलोगस्स उत्तमा सिद्धा। आरुग्ग-बोहिला , समाहि-वरमुत्तमं दिंतु ॥६॥ चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा। सागर-वर-गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु॥७॥
[यहाँ सामायिक चउवीसंथव दो आवश्यक पूरे हुए कहकर 'तिक्खुत्तो से तीन बार गुरु वन्दन कर तीसरे आवश्यक की आज्ञा ले और दो ‘इच्छामि खमासमणो' बोले।]
श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र