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________________ जाव अरिहंताणं, भगवंताणं, नमोकारेणं, न पारेमि, ताव कायं ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं, अप्पाणं वोसिरामि। [पद्मासन आदि से बैठकर या खड़े होकर कायोत्सर्ग ध्यान करना।] ['काउसग्ग' में निम्न ९९ अतिचारों के पाठ बोलना।] चौदह ज्ञान के अतिचार आगमे तिविहे पण्णत्ते तं जहा-सुत्तागमे, अत्थागमे, तदुभयागमे, इस तरह तीन प्रकार आगम रूप ज्ञान के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोऊँ__ जं वाइद्धं, वच्चामेलियं, हीणक्खरं, अच्चक्खरं, पय-हीणं, विणय-हीणं, जोग-हीणं, घोस-हीणं, सुदिनं, दुठ्ठपडिच्छियं, अकाले कओ सज्झाओ, काले न कओ सज्झाओ, असज्झाए सज्झाइयं, सज्झाए न सज्झाइयं, भणतां, गुणतां, विचारतां, ज्ञान और ज्ञानवन्त की आशातना की हो तो आलोऊँ। श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र ३९
SR No.006269
Book TitleShravak Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushkarmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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