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मुद्रण की दृष्टि से पुस्तक को सर्वाधिक सुन्दर और चित्रयुक्त-सचित्र बनाने के लिए श्रीयुत् सम्माननीय श्रीचन्द जी सुराना ने जो प्रयास किया है वह भी भुलाया नहीं जा सकता। साथ ही उन अर्थ-सहयोगियो को भी विस्मृत नहीं किया जा सकता जिनके मधुर सहकार से ही यह पुस्तक प्रकाश में आई है।
मन्त्री
तारक गरु जैन ग्रन्थालय गुरु पुष्कर मार्ग, उदयपुर (राजस्थान)