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देवयश पुनि अजितवीर्य के,
__चरण नमूं हमेश ॥ वंदूं. ॥५॥ विद्यमान विदेह क्षेत्र में,
- करत ललित उपदेश। भव दुःखभञ्जन भवि मन रञ्जन,
'पुष्कर' के जिनेश । वंदूं. ॥६॥ गणधर स्तुति
(तर्ज-पूर्ववत्) वंदूं गणधर के चरणार।
वीर जिनवर के अग्यार । टेर ।। इन्द्रभूति और अगनिभूति जी,
वायुभूति सुखकार। व्यक्तभूति की अजब विभूति,
प्रकटित है संसार ॥ वंदूं. ॥१॥ सुधर्म-स्वामी का कलियुग माहिं,
__ है परम उपकार। विविध ज्ञान प्रदान करि पुनि,
__ पहुंचे मोक्ष मझार ॥ वंदूं. ॥ २॥
श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र