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१. मिथ्यात्व का प्रतिक्रमण, २. अव्रत का प्रतिक्रमण, ३. कषाय का प्रतिक्रमण, ४. प्रमाद का प्रतिक्रमण, ५. अशुभ योग का प्रतिक्रमण,
इन पाँच प्रतिक्रमणों में से कोई प्रतिक्रमण न किया हो, तो
तस्स मिच्छामि दुक्कडं। गये काल का प्रतिक्रमण, वर्तमान काल की सामायिक, आगामी काल का पच्चक्खाण, इनमें कोई दोष लगा हो, तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
दोहा आगे आगे दव बले, पीछे हरिया होय ।
बलिहारी उस वृक्ष की, जड़ काट्यां फल होय॥
शम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा, और आस्था, इनको धारण करता हूँ। | श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र १२३ |