SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रतिक्रमण में चार लोगस्स, पाक्षिक में आठ लोगस्स, चातुर्मासिक में बारह लोगस्स और सांवत्सरिक में बीस लोगस्स का ध्यान करें। यह साधु सम्मेलन का नियम है । फिर 'नमो अरिहंताणं' पढ़कर ध्यान खोलना ।) कायोत्सर्ग दोषापहार सूत्र कायोत्सर्ग में आर्त्तध्यान, रौद्रध्यान ध्याया हो, और धर्मध्यान, शुक्लध्यान न ध्याया हो, तो 'तस्स मिच्छामि दुक्कडं । चतुर्विंशतिस्तव सूत्र लोगस्स उज्जोयगरे, धम्मतित्थयरे जिणे । अरिहंते कित्तइस्सं, चउवीसं पि केवली ॥१॥ उसभमजियं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमई च । पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥ २ ॥ श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र ११८
SR No.006269
Book TitleShravak Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushkarmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy