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श्री पुष्कर मुनि जी महाराज आदि ..... अढाई द्वीप पन्द्रह क्षेत्रों में जघन्य दो हजार करोड़, उत्कृष्ट नव हजार करोड़ साधु जी महाराज विचरते हैं। पाँच महाव्रत पालें, पाँच इन्द्रिय जीतें, चार कषाय टालें, भाव सच्चे, करण सच्चे, जोग सच्चे, क्षमावन्त, वैराग्यवन्त, मन-समाधारणया, वय-समाधारणया, काय-समाधारणया, नाण-सम्पन्ना, दंसण-सम्पन्ना, चारित्त-सम्पन्ना, वेदनी-समा-अहियासणया, मारणांतिय-समाअहियासणया, ऐसे सत्ताईस गुणों से विराजमान हैं; उन साधु जी महाराज को मैं वंदना एवं नमस्कार करता हूँ तथा जानते-अनजानते किसी भी प्रकार की अविनय एवं आशातना हुई हो, तो तीन करण और तीन योग से क्षमा चाहता हूँ।
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श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र