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(४२) सत्यनिष्ठा मनुष्य को सदा निर्भय और वीर बनाती है, अपने प्रति ईमानदार भी । जब मानव झूठ बोलता है या झूठा आचरण करता है तो उसके भीतर ही भीतर एक भय और हीनभावना का ऐसा जर्बदस्त जहरीला डंक लगता है कि उसकी आत्म-चेतना मूर्च्छित सी हो जाती है । अज्ञात भय से व्याप्त शिथिलता से समूचा शरीर निढाल, निःशक्त और आत्मा मरी-मरी सी हो जाती है । जिस प्रकार हृदयाघात का धक्का लगने से समूचा शरीर ढीला,सत्वहीन, शक्तिहीन और उत्साहहीन सा हो जाता है, उसी प्रकार असत्य का आघात लगने से मन और आत्मा की शक्ति क्षीण होने लगती है । साहस और उत्साह की भावना मिट जाती है, असत्यवादी की आत्मा भीतर ही भीतर खुद को धिक्कारती है और आत्म-ग्लानि के कोल्हू में निचुड़कर रसहीन, सारहीन सी हो जाती है । झूठा व्यक्ति चाहे जितनी ऊंची आवाज में बोले...