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हैं, साथ ही मानसिक दृष्टि से भी व्यक्ति अत्यन्त कमजोर, हीन और अविश्वासी बन जाता है । आज का युवा वर्ग इन बुराइयों से घिर रहा है और इसलिए वह निस्तेज और निरुत्साह हो गया है । वह इधर-उधर भटक रहा हैं । परिवार वाले भी परेशान हैं, माता-पिता भी चिन्तित हैं और इन बुरी आदतों से ग्रस्त व्यक्ति स्वयं को भी सुखी 'महसूस नहीं कर पाता है, किन्तु वह बुरी आदतों से मजबूर है । स्वयं को इनके चंगुल से मुक्त कराने में असमर्थ पा रहा है । यह उसकी सबसे बड़ी चारित्रिक दुर्बलता है ।
पहले व्यक्ति बुराइयों को पकड़ता है और फिर बुराइयाँ उसे इस प्रकार जकड़ लेती हैं कि वह आसानी से मुक्त नहीं हो पाता । वे बुराइयाँ, मनुष्य के मानसिक बल को खत्म कर देती हैं । नैतिक भावनाओं को समाप्त कर डालती हैं और शरीर शक्ति को भी क्षीण कर देती हैं । इस प्रकार उसका नैतिक एवं शारीरिक पतन होता जाता हैं ।