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सफलता का महान समय रहा है । आयु का यही वह समय है, जब मनुष्य कोई महान कार्य कर सकता है, अथक परिश्रम व कष्ट सहने की क्षमता, आपत्तियों का मुकाबला करने की शक्ति, संघर्ष की अदम्य चेतना यौवन काल में ही दीप्त रहती है । यौवन में न केवल भुजाओं में बल रहता है, किन्तु सभी मानसिक शक्तियाँ भी पूर्ण जागृत और पूर्ण स्फूर्तियुक्त रहती हैं, उनमें ऊर्जा भी भरपूर रहती है और ऊष्मा भी । इसलिए सफलता का यह स्वर्ण काल कहा जा सकता है । नव-सर्जना का यह बसन्त और श्रावण मास माना जा सकता है । भगवान् महावीर ने इसे ही जीवन का मध्यकाल कहा है । विसर्जन का समय : बुढ़ापा
बचपन का अर्जनकाल, यौवन का सर्जनकाल पूर्ण होने के बाद, बुढ़ापे का विसर्जनकाल आता है । बचपन में जो शक्ति संचित की जाती है, वह यौवन में व्यय