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442... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
विधि
उभय हथेलियों को मध्यभाग की ओर अभिमुख कर अंगूठों को हथेली के भीतर मोड़ें, तर्जनी के सिवाय शेष अंगुलियों को अंगूठों के ऊपर स्थापित करें तथा तर्जनी को मध्य दिशा की ओर फैलाकर एवं प्रथम पोर को परस्पर जोड़ने पर वायु मुद्रा का यह प्रकार निष्पन्न होता है । 132
सुपरिणाम
वायु मुद्रा
• वायु मुद्रा का प्रभाव शरीरस्थ जल तत्त्व पर पड़ता है। यह जीवन प्रवाह को सुरक्षित एवं शरीर के तापमान को नियंत्रित रखते हुए रूधिर आदि की कार्य पद्धति में महत्त्वपूर्ण सहयोग देती है। • स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा बलिष्ठता एवं स्फूर्ति को बढ़ाती है । स्वास्थ्य केन्द्र को सक्रिय करते हुए यह मुद्रा ऊर्जा का उर्ध्वारोहण करती है और आत्म विकास में सहायक बनती है। 111. विद्या मुद्रा
यह तान्त्रिक मुद्रा वज्रधातु मण्डल आदि धर्म प्रसंगों पर धारण की जाती है। सामान्य वर्णन पूर्ववत ।