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402... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
79. रत्न मुद्रा
इस मुद्रा के दो प्रकार हैं। यह मुद्रा नाम के अनुरूप रत्न की सूचक है और उसे रत्नसंभव नामक व्यक्ति विशेष से जोड़ा गया है। शेष वर्णन पूर्ववत। प्रथम प्रकार
हथेलियों को समीप कर अंगूठों को Cross करें, तर्जनी, अनामिका और कनिष्ठिका को बाहर की तरफ अन्तर्ग्रथित करें तथा मध्यमा को ऊर्ध्व प्रसरित कर उनके अग्रभागों को जोड़ने पर प्रथम प्रकार की रत्न मुद्रा बनती है।94
रत्न मुद्रा-1 सुपरिणाम
• रत्न मुद्रा को धारण करने से पृथ्वी एवं अग्नि तत्त्व का संतुलन होता है। इसी के साथ आलस्य, निद्रा, प्रमाद, उग्रता, चिड़चिड़ापन, शारीरिक दुर्बलता आदि का निर्गमन होता है। • मूलाधार एवं मणिपुर चक्र को प्रभावित करते हुए मधुमेह, कब्ज, अपच, गैस एवं पाचन विकृतियों को दूर कर शक्तिवर्धन करती है। • एक्युप्रेशर चिकित्सा के अनुसार एसिडिटी, उल्टी, सिरदर्द को ठीक करती है। प्राणवायु, पित्ताशय, लीवर, रक्त परिभ्रमण आदि का संतुलन करती है।