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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...363
• आज्ञा एवं मूलाधार चक्र को प्रभावित कर यह मुद्रा कार्य दक्षता, कर्म कुशलता एवं कुशाग्र बुद्धि प्रदान करती है ।
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एक्युप्रेशर प्रणाली के अनुसार यह निर्णायक शक्ति, स्मरणशक्ति एवं देखने-सुनने की शक्तियों को जागृत करती है तथा स्त्री सम्बन्धी रोगों का शमन करती है।
50. जौ - फ्यूदौ- इन् मुद्रा
यह मुद्रा पूर्ववत गर्भधातु मण्डल से सम्बन्धित क्रियाओं के दौरान की जाती है। इसकी रचना युगल हाथों से इस प्रकार होती है
विधि
हथेलियाँ मध्यभाग की तरफ, अंगूठे हथेली में मुड़े हुए, मध्यमा और अनामिका अंगूठे के ऊपर मुड़ी हुई, तर्जनी और कनिष्ठिका पहले एवं दूसरे जोड़ पर मुड़ी हुई एवं अपने प्रतिरूप का स्पर्श करती हुई रहें इस भाँति जौफ्युदौ - इन् मुद्रा बनती है 54
जी-फ्यूदी-इन् मुद्रा
सुपरिणाम
• यह मुद्रा जल एवं आकाश तत्त्व को संतुलित कर हृदय एवं रक्त सम्बन्धी विकारों को दूर करती है। शारीरिक रूक्षता, हार्ट अटैक, लकवा, मूर्च्छा आदि रोगों का निवारण करती है।