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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...361
जी-रेंजे-इन् मुद्रा
सुपरिणाम
• यह मुद्रा अग्नि एवं आकाश तत्त्व का संतुलन कर पाचन अग्नि को दुगुनी करती है। हृदय विकारों को दूर कर शरीर में ओजस्विता एवं स्फूर्ति का संचार करती है।
• मणिपुर एवं सहस्रार चक्र को जागृत कर यह मुद्रा संशयात्मक स्थिति का निराकरण, निर्विकल्प आत्म अवस्था का प्रकटीकरण, मधुमेह, कब्ज, अपच, एसिडिटी एवं पाचन विकारों का उपशमन करती है।
• एड्रिनल एवं पिनियल के स्राव को संतुलित कर यह मुद्रा कामवासना का उपशमन, निर्णायक शक्ति में वर्धन तथा साधक को साहसी, निर्भयी एवं आशावादी बनाती है।