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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ....329 सुपरिणाम
चौ-जइ-इन् मुद्रा को धारण करने से मणिपुर एवं अनाहत चक्र जागृत होते हैं। इससे मनोविकार घटते हैं एवं परमार्थ रुचि बढ़ती है।
यह मुद्रा अग्नि एवं वायु तत्त्व को संतुलित करते हुए पित्त प्रकृति को नियंत्रित करती है और एनीमिया, पीलिया, पाचन विकार, श्वसन विकार आदि को दूर करती है।
एड्रिनल, पैन्क्रियाज एवं थायमस ग्रन्थि के स्राव को संतुलित करते हुए यह बालकों के विकास में सहायक बनती है, शारीरिक विकास एवं जननेन्द्रियों के विकास पर नियंत्रण रखती है तथा व्यक्ति को साहसी, निर्भीक एवं सहिष्णु बनाती है। 26. दै-कै-इन् मुद्रा
इस मुद्रा का प्रयोग भी गर्भधातु मण्डल, वज्रधातु मण्डल आदि धार्मिक क्रियाओं को विधिवत सम्पन्न करने हेतु किया जाता है। प्रस्तुत मुद्रा का अर्थ विशाल महासागर है। इसका प्रतीकात्मक अर्थ आत्मशक्ति की व्यापकता हो सकता है। यह मुद्रा मंदिर के पवित्रीकरण और शुद्धिकरण की सूचक है। जैसे सागर की गहराई अतुल है वैसे ही आत्मा की शक्ति भी असीम है। इस मुद्रा द्वारा आत्मशक्ति को पहचानने का उपक्रम किया जाता है इसीलिए यह मुद्रा मंदिर पवित्रता की सूचक मानी गई है।
दै-के-इन् मुद्रा