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306... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
विधि
दायीं हथेली को मध्य भाग तक नीचे की ओर अभिमुख करते हुए, उस पर बायीं हथेली दायें हाथ पर विश्राम करती हुई रहें। अंगूठे और अंगुलियाँ मध्यभाग की ओर फैले हुए रहें, इस भाँति अनुज मुद्रा बनती है।
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अनुज मुद्रा
सुपरिणाम
• यह मुद्रा जल एवं अग्नि तत्त्व में संतुलन स्थापित कर पित्त से उभरने वाली बीमारियों एवं मूत्र दोष आदि का परिहार कर गुर्दे को स्वस्थ बनाती है। चिड़चिड़ापन, रूक्षता, उग्रता आदि का निवारण कर सौम्यता आदि गुणों का विकास करती है।
• इस मुद्रा का प्रयोग स्वाधिष्ठान एवं मणिपुर चक्र को जागृत करते हुए पेट के पर्दे के नीचे स्थित सभी अवयवों का नियमन करता है तथा शरीरस्थ सोडियम आदि का संतुलन कर तनाव प्रबंधन करता है ।
एक्युप्रेशर पद्धति के अनुसार यह मुद्रा एड्रिनल, पेन्क्रियाज एवं नाभि
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