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भारतीय बौद्ध में प्रचलित मुद्राओं का स्वरूप एवं उनका महत्त्व ...295 18. त्रिशरणा मुद्रा
भारतीय बौद्ध परम्परा में प्रचलित यह मुद्रा तीन आश्रय या तीन शरण स्थल- बुद्ध, धर्म और संघ की सूचक है। इस मुद्रा चित्र में त्रिशरण के प्रतीक रूप में तीन अंगुलियाँ फैलायी हुई है। विधि
दायी हथेली को सामने की तरफ रखते हुए अंगूठा और तर्जनी के अग्रभागों को मिलायें तथा शेष अंगुलियों को पृथक-पृथक रूप में सीधी रखने पर त्रिशरणा मुद्रा बनती है।21
त्रिशारणा मुद्रा सुपरिणाम
यह मुद्रा वायु तत्त्व को प्रभावित करती है। इससे प्राण वायु स्थिर होती है तथा हृदय, गुर्दै, फेफड़ें आदि के रोग उपशान्त होते हैं।
• यह मुद्रा आज्ञा एवं विशुद्धि चक्र को जागृत करते हुए साधक की ज्ञान ग्रन्थियाँ खोलती है। इससे चित्त शान्त एवं स्थिर बनता है और क्रोधादि कषाय मन्द हो जाते हैं।