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280... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन द्वितीय प्रकार
इस मुद्रा में दायीं हथेली को बायीं तरफ, बायीं हथेली को दायीं तरफ रखें, अंगूठें हथेली के भीतर मुड़े हुए, मध्यमा और अनामिका अंगूठों के ऊपर मुड़ी हुई, तर्जनी और कनिष्ठिका ऊर्ध्व प्रसरित एवं घुमी हुई तथा दायें हाथ का पिछला हिस्सा बायें हाथ के पिछले हिस्से को क्रॉस करता हुआ और तर्जनी एवं कनिष्ठिका आपस में अकड़ी हुई रहने पर द्वितीय गंध मुद्रा बनती है। 7
गंध मुद्रा - 2
सुपरिणाम
• गन्ध मुद्रा को धारण करने से मणिपुर एवं आज्ञा चक्र सक्रिय बनते हैं। इससे साधक शारीरिक स्वस्थता आध्यात्मिक उच्चता और स्थिरता को प्राप्त करता है।
• यह मुद्रा अग्नि एवं आकाश तत्त्व को संतुलित करती है। इससे स्नायुओं की स्थितिस्थापकता बनी रहती है। शरीरस्थ तीनों अग्नियाँ जागृत होकर ऊर्ध्वारोहित होती है। यह रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति को भी विकसित करती है।