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268... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन भावों को जागृत करती है। • स्वाधिष्ठान एवं आज्ञा चक्र को प्रभावित कर यह मुद्रा जिह्वा पर सरस्वती का वास करवाती है। दिमाग को शांत, कुशाग्र एवं शीघ्र ग्राही बनाती है। • नाभि एवं ललाट केन्द्र को सम्यक बनाते हुए अनुभूतियों में विकास करती है, परामनोवैज्ञानिक ज्ञान को विकसित करती है तथा नाभि चक्र को संतुलित एवं यथास्थान करती है। 74. वज्रकुल मुद्रा
यह मुद्रा वज्रकुल देवता से सम्बन्धित एवं वज्रकुल की सूचक है। शेष वर्णन पूर्ववत। विधि
इस मुद्रा में दायीं हथेली ऊर्ध्वाभिमुख एवं अंगुलियाँ मध्य भाग की तरफ फैली हुई रहें। बायीं हथेली अधोमुख एवं अंगुलियाँ मध्यभाग की तरफ फैली रहें। दायें हाथ का पृष्ठ भाग बायें हाथ के पृष्ठ भाग पर रहें तथा दायां अंगूठा बायीं कनिष्ठिका के नीचे और दायीं कनिष्ठिका बायें अंगूठे के नीचे रहे। इस भाँति वज्रकुल मुद्रा बनती है।84
वजकुल मुद्रा