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जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक स्वरूप ...243 विधि
इस मुद्रा में हथेलियाँ ऊर्ध्वाभिमुख, अंगुलियाँ मध्य भाग की तरफ प्रसरित और एक-दूसरे में हल्के से अन्तर्ग्रथित हुई रहती है।60 सुपरिणाम
• यह मुद्रा पृथ्वी एवं वायु तत्त्व को संतुलित करती है। इससे वायु सम्बन्धी विकार, साइटिका, सन्धिवात, जोड़ों के दर्द आदि दूर होते हैं तथा शरीर सुंदर, पुष्ट एवं शक्तिशाली बनता है। • मूलाधार एवं अनाहत चक्रों को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा आरोग्य, दक्षता, कार्य कुशलता, आध्यात्मिक ऊर्ध्वता एवं तेजस्विता में वर्धन करती है। • यौन एवं थायमस ग्रंथियों को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा बच्चों के विकास एवं रोग रक्षा आदि में सहायक बनती है। 53. रागराज मुद्रा
यह तान्त्रिक मुद्रा धार्मिक कार्यों के समय देवी-देवताओं के लिए धारण की जाती है तथा इसका सम्बन्ध रागराज देवता से है। यह संयुक्त मुद्रा निम्न है
रागराज मुद्रा