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232... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
विधि ___दोनों हाथों की अंगुलियों के अग्रभाग को अन्तर्ग्रथित करते हुए बायें अंगूठे के ऊपर दायां अंगूठा रखने से कोंगो-गस्सही मुद्रा बनती है।50 सुपरिणाम
आकाश तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा त्याग एवं अध्यात्म की भावना में वृद्धि करती है। जीव मात्र के प्रति हृदय में प्रेम, करुणा एवं वात्सल्य भाव जागृत करती है। • सहस्रार एवं आज्ञा चक्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा मस्तिष्क में मेरुजल का संचालन कर कामेच्छाओं पर नियंत्रण करती है। शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक विकास में सहयोगी बनती है। • ज्ञान एवं दर्शन केन्द्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा बुद्धि-स्मृति एवं चिन्तन को प्रबुद्ध करती है। 47. कोंगौ-केन्-इन् मुद्रा
यह मुद्रा दो रूपों में प्राप्त होती है। प्रयोजन की अपेक्षा दोनों में समानता है, किन्तु प्रविधि में अन्तर है। उपलब्ध वर्णन के अनुसार यह वज्र के समान कठोर शक्ति और विस्मयकारी क्रोध की सूचक है। इसमें दोनों हाथों में समान मुद्रा बनती है। प्रथम विधि ___दोनों हथेलियों को मध्यभाग में रखें, अंगूठों को भीतर डालते हुए हाथों की मुट्ठी बांधे तथा दायें हाथ को छाती के स्तर पर और बायें को कमर के निचले हिस्से पर धारण करने से ‘कोंगौ-केन्-इन्' मुद्रा का निर्माण होता है।51 सुपरिणाम . • इस मुद्रा को करने से पृथ्वी एवं जल तत्त्व संतुलित रहते हैं। यह शारीरिक मोटापा, जड़ता,दुर्बलता, रूक्षता आदि का निवारण करते हुए शरीर में उष्णता, जोश, स्फूर्ति, तीव्र दृष्टि आदि का वर्धन करती है। • मूलाधार एवं स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा एक अच्छे व्यक्तित्व के निर्माण में सहयोगी बनती है। • नाभिचक्र एवं यौन ग्रंथियों को प्रभावित करते हुए देह