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जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक स्वरूप ...229 44. किचिजौ-इन् मुद्रा
यह मुद्रा जापान और चीन की बौद्ध परम्परा में समान रूप से प्राप्त होती है। यह पूर्वनिर्दिष्ट 'अन्-आय-इन्' मुद्रा का ही प्रकारान्तर है। इसे अच्छे भविष्य या किस्मत की सूचक कहा गया है। विधि ___ बायीं हथेली को बाहर की तरफ करें, तर्जनी, मध्यमा और कनिष्ठिका को सीधी रखें तथा अनामिका को अंगूठे के अग्रभाग से स्पर्श करवायें, तब 'किचिजौ-इन्' मुद्रा बनती है।48
किचिजी-इन् मुद्रा सुपरिणाम
• यह मुद्रा पृथ्वी एवं जल तत्त्व को संतुलित करती है। इससे रक्त विकार दूर होते हैं, कफ प्रकृत्ति संतुलित रहती है। सुस्ती, भारीपन, चर्बी, सर्दी, सांस की तकलीफ, दमा, आर्धाइटिस आदि दोषों का शमन होता है। • मूलाधार एवं स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत करते हुए स्वस्थ निरोगी काया, कार्य कुशलता,