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202... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
पर रखें तथा शेष अंगुलियों को ऊपर उठाते हुए उन्हें प्रथम पोर पर अन्तर्ग्रथित करें। इस तरह बुद्धालोचनी मुद्रा बनती है | 24
बुद्धालोचनी मुद्रा
सुपरिणाम
• यह मुद्रा करने से अग्नि एवं जल तत्त्व प्रभावित होते हैं। इससे शारीरिक एवं स्वाभाविक रूखापन दूर होता है । शरीर का तेज बढ़ता है। आलस्य, निद्रा, मोटापा, दुर्बलता आदि का निवारण होता है। • इस मुद्रा से मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र जागृत होकर शरीर में रक्त और शर्करा का संतुलन तथा मधुमेह, कब्ज, अपच आदि का शमन करते हैं। • एक्युप्रेशर सिद्धान्त के अनुसार यह मुद्रा मंदता, भीरूता, हीनता, बी.पी., एसिडिटी, कमजोरी आदि का निवारण करती है।