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________________ 200... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन इस तान्त्रिक मुद्रा का प्रभाव जापानी और चीनी बौद्ध परम्परा में सर्वाधिक है। यह मुद्रा वहाँ के धर्मगुरुओं या भक्तों के द्वारा धारण की जाती है। विद्वानों ने इसे वज्र के समान शक्तिशाली, क्रोधावस्था में मनोभावों के नाश एवं नियमों की सच्चाई की सूचक कहा है। यह संयुक्त मुद्रा छाती के पास धारण की जाती है। विधि ____दोनों हाथों के अंगूठों को अन्दर डालते हुए मुट्ठी बांधे, हथेलियों को बाहर की ओर अभिमुख करें तथा हाथों को कलाई के स्तर पर Cross करते हुए दायें हाथ को आगे और बायें हाथ को शरीर के पास रखें, तब उपर्युक्त मुद्रा बनती है।22 सुपरिणाम • इस मुद्रा को धारण करने से अग्नि एवं जल तत्त्व का संतुलन होता है। इससे मूत्र दोष का परिहार एवं पित्त से होने वाली बीमारियों का उपशमन होता है। • स्वाधिष्ठान एवं मणिपुर चक्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा नाभि चक्र को संतुलित और पेट सम्बन्धी विकारों को उपशमित करती है तथा तनाव नियंत्रण एवं चारित्र का विकास करती है। • स्वास्थ्य एवं तैजस केन्द्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा ईर्ष्या, घृणा, भय, संघर्ष, तृष्णा आदि वृत्तियों का निरोध करती है। 21. बसर-उन्-कोंगौ-इन् मुद्रा-2 उपर्युक्त मुद्रा के दो प्रकारान्तर हैं। इसका सामान्य वर्णन पूर्ववत जानना चाहिये। मुद्रा बनाने की विधि निम्न प्रकार हैविधि इस मुद्रा में भी दोनों हाथों की मुट्ठी बनाते हैं किन्तु यहाँ तर्जनी को मुट्ठी से पृथक कर उसके अग्रभाग को अंगूठे के द्वितीय पोर से स्पर्श करवाते हैं। शेष विधि प्रथम प्रकार के समान है।23 सुपरिणाम • यह मुद्रा आकाश तत्त्व को प्रभावित करते हुए शरीर स्थित विष द्रव्यों एवं विजातीय तत्त्वों का निष्कासन करती है। शरीर को तंदुरुस्त एवं मजबूत बनाती है और क्रोधादि कषायों से मुक्त करती है। • इस मुद्रा से आज्ञा एवं
SR No.006256
Book TitleBauddh Parampara Me Prachalit Mudraoka Rahasyatmak parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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