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164... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन विधि ___दोनों हाथों को समीप लाकर इस तरह मिलायें कि अंगुलियाँ हल्की सी झुकी हुई रहें, तब ‘संफुट-गस्सहौ' मुद्रा बनती है।' सुपरिणाम
• संफुट-गस्सही मुद्रा को धारण करने से शरीरगत वायु एवं आकाश तत्त्व संतुलित होकर भाव धारा को निर्मल बनाते हैं। • यह मुद्रा विषय-कषायों को मन्द करते हुए वायु दोषों का निराकरण करती है। • अनाहत एवं आज्ञा चक्र को जागृत करते हुए यह हृदय में सहानुभूति, सेवा, करुणा, मैत्री एवं प्रेम भाव का जागरण, वाणी को मधुर तथा बुद्धि को कुशाग्र बनाती है। • थायमस एवं पिच्युटरी के स्राव को संतुलित करते हुए यह आन्तरिक हलन-चलन, हृदय की धड़कन आदि को नियंत्रित करती है तथा मनोगत भावों को निर्मल एवं परिष्कृत भी बनाती है। 10. तैरै-गस्सही मुद्रा ___ यह मुद्रा पूर्ववत जापानी बौद्ध परम्परा के धर्मगुरुओं एवं श्रद्धालुओं द्वारा प्रसंग विशेष पर धारण की जाती है। इस मुद्रा को विद्वानों ने निर्माण आधार की सूचक कहा है।
तैरे-गस्सही मुद्रा