________________
160... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
व्यक्तित्व का संतुलन होता है। जल तत्त्व का संतुलन होने से निर्मल विचारों का जन्म होता है। • मूलाधार एवं स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत कर यह मुद्रा आरोग्य,दक्षता, कर्म कौशलता एवं वचन सिद्धि को प्राप्त करवाती है। • काम ग्रंथियों के स्राव का नियंत्रण कर जननेन्द्रिय सम्बन्धी रोगों का शमन करती है। तथा चेहरे का आकर्षण, तेज, व्यक्तित्व, स्वर की मधुरता आदि इसी से प्राप्त होती है।
6. मिहरित गस्सहौ मुद्रा
यह जापानी बौद्ध परम्परा में प्रसंग विशेष पर धारण की जाती है । पूर्ववत बारह द्रव्य हाथ मिलन की मुद्राओं में से यह एक है। इसकी विधि निम्न हैविधि
दोनों हाथों को पृष्ठ भाग से स्पर्श करवायें तथा अंगुलियों और अंगूठों के अग्रभागों को अन्तर्ग्रथित करने पर यह 'विपरीत मुद्रा' कहलाती है । "
मिहरित गस्सही मुद्रा